इस्लाम नस्लवाद और राष्ट्रवाद के मुद्दे को कैसे संबोधित करता है?

इस्लाम हर प्रकार के नस्लवाद और राष्ट्रवाद का सख्ती से विरोध करता है। यह सिखाता है कि सभी इंसान एक ही मूल—मिट्टी—से बनाए गए हैं, जिसका मतलब है कि किसी को भी दूसरे पर श्रेष्ठता का दावा करने का अधिकार नहीं है।

संस्कृति या नस्ल में भिन्नता के बावजूद, हम सभी एक ही तत्व से बने हैं। अल्लाह की नजर में, सच्ची श्रेष्ठता त्वचा के रंग, जातीयता या राष्ट्रीयता पर नहीं, बल्कि धार्मिकता और परहेज़गारी पर आधारित होती है।इस्लाम नस्लों और संस्कृतियों की विविधता को विभाजन का कारण नहीं, बल्कि आपसी पहचान और समझ का एक माध्यम मानता है। अल्लाह कहता है: " ऐ मनुष्यो! हमने तुम्हें एक नर और एक मादा से पैदा किया तथा हमने तुम्हें जातियों और क़बीलों में कर दिए, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। निःसंदेह अल्लाह के निकट तुममें सबसे अधिक सम्मान वाला वह है, जो तुममें सबसे अधिक तक़्वा वाला है।